मोह भंग
अरे मैना रानी !
हाँ, तोते राजा !
तुझे पता है?
क्या?
आदमियों और पक्षियों में क्या अंतर होता है?
हाँ, आदमी जमीन पर चलते हैं और पक्षी आसमान में उड़ते हैं।
भोली ही रहेगी तू ! अच्छा,यह बता हम तो मस्त रहते हैं पर आदमी दुखी क्यों रहते हैं?
मैं क्या जानूं?
देख, सृष्टि की निरंतरता के लिए संतान तो हम भी जनते हैं। पर उन्हें पाल पोस कर
उड़ने लायक बना कर आकाश में खुला छोड़ देते हैं। उनसे मोह नहीं पालते !
हाँ, यह तो सही है।
पर आदमी उन्हें अपने बुदापे का सहारा बनाने के लिए अपने साथ चिपका कर रखता है !
सही कहा राजा।
उसकी संतान अपने सपनों की नई सोच के साथ उड़ान भरना चाहती है।
पर आदमी अपने सुख के लिए उसे अपने बंधन में बांधता है।
तो वह अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ती के लिए हर बंधन तोड़ आगे बढ जाती है।
आदमी का मोह भंग हो जाता है और वह दुःख के सागर में ………… !
हाँ, तोते राजा !
— विष्णु सक्सेना