मौन
कभी सौ किताबों में है मौन केवल,
कभी मौन में सौ किताबें छुपी हैं।
अगर डूब जाओगे दिल में किसी के
तभी पाओगे कितनी आहें छुपी हैं।।
हृदय के ककहरे को बांचा किसी ने,
किसी ने ककहरे में खोजा हृदय को।
भरी भावना जिस तरह जिस किसी में,
वही देखता हर सृजन में, प्रलय में।।
गरीबों को दिखती है चंदा में रोटी,
व रोटी में चंदा धनी देखते हैं।
कहानी अलग है बहुत इस जहां में,
ये बेटी लहू में सनी देखते हैं।।
लुटेरे नहीं हैं बहुत इस धरा पर,
न पापी अधर्मी से दुनिया भरी है।
समस्या बड़ी है शरीफों की चुप्पी,
इन्हीं कारणों से शराफ़त डरी है।।
शरीफों से कह दो उठें, मौन तोड़ें,
नहीं तो अधर्मी की ताकत बढ़ेगी।
छुरी के हवाले अगर सिर करोगे,
शराफ़त रसातल पहुंचकर रहेगी।।
चलो एक सूरज जमीं पर उगाएं,
कहीं रह न जाए किसी घर अंधेरा।
बंटे दाल – रोटी, बंटे भात – भांजी,
सभी के लिए भोर -लाली- सवेरा।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध