गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अभी हैं प्यार के मारे, चले भी आइये अब तो।
तकीं राहें हमीं हारे, चले भी आइये अब तो।।

कभी जल्दी चले आते, करें क्यों आप ऐसा ही।
सुनो क्यों रूप ये धारे, चले भी आइये अब तो।।

तन्हा हम अब खड़े देखो, लगे सूना जहां सारा।
बरसते आज अंगारे, चले भी आइये अब तो।।

मुहब्बत में जिये अब तक, वफ़ा तुमसे सदा की है ।
बने हैं आज बेचारे, चले भी आइये अब तो।।

दमकता आज चंदा है, अभी है चाँदनी बिखरी।
चमकते देख ये तारे, चले भी आइये अब तो।।

तुम्हारे हुस्न का आलम, हुये हम क़ैद इसमें ही।
तुम्हें अब इश्क़ ललकारे, चले भी आइये अब तो।।

घड़ी ये प्यार की देखो, गयी अब बीत कब से ही।
बहे आँसू अभी खारे, चले भी आइये अब तो।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’