गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यार रूठा तब सुनो सारी निशानी छीन ली।
ग़म दिये उसने मुझे सारी जवानी छीन ली।।

कब उसे धोखा दिया मैंने कहा कुछ और ही।
क्यों न आता वो इधर रातें सुहानी छीन लीं।।

आज हम टकरा गये फिर हो गये ज़ख़्मी सुनो।
देख घटना घट गयी तब सावधानी छीन ली।।

याद हम तो कर रहे थे बढ़ चले आगे तभी।
ख़्वाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली।।

प्यार की हम कर जमा रखते गये ख़त ही यहाँ।
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।।

— रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

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