कविता

सब कुछ हो तुम्ही स्वीकार करो

जन जन का कल्याण करो,
हे नेताजी उद्धार करो,उद्धार करो,
जन मन गण अधिनायकों का
सब कुछ हो तुम्हीं स्वीकार करो,
हिस्सा खाने,भृकुटि ताने,
बने रहो जाने माने,
चुप न रहो तुम कभी कहीं
गाते रहो खुद के गाने,
नौसिखियों सी हरकत करके
बने रहो तुम ही स्याने,
तेरे मुंह ही झूठ फबे,
रहो कुर्ता टोपी से सजे,
अंधभक्त तुम्हारा स्तुति भजे,
तबले जैसा पेट निकल के
करो खूब तुम मजे मजे,
आये नहीं तुम लाए गए हो,
रहे नहीं साधारण तुम
अवतारी हो अवतार धरो,
सब कुछ हो तुम्हीं स्वीकार करो,
वाणी से आग लगा सकते हो,
दंगा तुम भड़का सकते हो,
अपने एक इशारे पर
सपनें किसी का खा सकते हो,
पुलिस को तुम हड़का सकते हो,
कानून को कांख दबा सकते हो,
करने गए कभी जन्नत की सैर,
पल में दोज़ख बना सकते हो,
देशद्रोहियों को शह दे देकर
देशभक्ति का व्यापार करो,
हे नेता जी उद्धार करो,
सब कुछ हो तुम्हीं स्वीकार करो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554