स्मृतियाँ
स्मृतियाँ जीवित रहती हैं सदा
मन के किसी कोने में यादें बनकर
अमृत की चाह में सदैव अश्रु
बहकर सूख जाया करते हैं
पतझड़ के सूखे पत्तों से भी अक्सर
बाँसुरी की लय पर झूम जाती हैं
हृदय पटल की सोई हुईं तंद्राएँ जब
प्रेमी का सरस प्रेम अंतिम क्षण तक
उम्मीद की लहरों में गोते खाता है
क्या तुमने भी कभी समुद्र को
किसी के विरह में रोते हुए देखा है
साहिल तो अविचल है अपनी ही धुन में
शोर में अक्सर पथिक खो जाया करते हैं
— वर्षा वार्ष्णेय