कविता – सांस्कृतिक प्रतीक
रंग प्रतीक श्रंगार की धून पर,
एक खूबसूरत सी,
दुनिया को सौन्दर्य से सराबोर कर,
आगे बढ़ने की ताकत में,
प्रतीक का उन्नत स्थान है।
सनातनी संस्कृति में,
इस खूबसूरत संदेश में छिपा हुआ,
सबसे बेहतर सम्मान है।
जड़ों से जोड़ने में,
इसकी खास अहमियत है।
यही नवीन प्रयास है,
इस परिकल्पना से,
सब कुछ हासिल करने की,
मिलता बड़ी हिम्मत है।
पर्व त्यौहार एवं व्रत हम लोग,
उमंग और उत्साह से मनाते हैं।
खुशियां बेशूमार मिले,
उसकी ही गीत गाते हैं।
यही जिंदगी को बेहतर बनाने में,
हमेशा मदद करता है।
आनन्द और प्रसन्नता से,
सबों को रूबरू होना पड़ता है।
घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहें,
इसकी विशिष्ट पहचान है।
उम्मीद बनाएं रखने में,
सबसे बड़ी पहचान है।
नई नवेली परम्परा को,
आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए,
एकजुटता और उत्साह की,
खुशियां बेशूमार मिले,
नया वातावरण बनाता है।
सुख चैन से रहने का,
मतलब हमें सिखाता है।
हम कह सकते हैं कि,
यही एकता का संकल्प है।
कहने को तो दुनिया में बड़ी लम्बी कतार में,
तरह-तरह की बातें कही सुनी जाती है,
हमेशा आगे बढ़ने में,
सबसे बेहतर प्रकल्प है।
— डॉ. अशोक, पटना