कविता

व्यंग्य कविता – चल जल्दी इस लाइन में

कोशिश कर तो सही
कुछ अच्छा सोचने की,
कब तक उलझे रहोगे
वहीं पीछे धकेलते दकियानूसियत में,
पढ़ नहीं सकते,
सोच नहीं सकते,
तो निकल इस मनहूसियत से,
आजा जल्दी किसी की हिफाज़त में,
चल खुल के आ सियासत में,
असल मुद्दों से हो जा दूर,
थोड़ा एटीट्यूट रख होकर मगरूर,
तेरी थोथी जानकारियां ही
बहुत काम आएंगे इस क्षेत्र में,
उन्नति की उम्मीद रख अपने नेत्र में,
लोगों को भड़का,डरा-धमका,
अपने लिए उचित माहौल बना,
कुछ बेकार पड़े मुस्टंडों को
घुमा-फिरा,पिला-खिला,
बीच बीच में नारे भी लगवा,
फिर बेसिरपैर की भाषण सुना,
ये भारत है भाई
बहुत फुर्सत में लोग रहते हैं,
रोज न जाने कितने ही
झूठे भाषण व जुमले सहते हैं,
लड़ा-भिड़ा व कर कुछ कांड,
लोकप्रिय हो जाओगे जब
पुलिस लेगी तेरा रिमांड,
धीरे-धीरे लोगों का कारवां
तुम्हारे पीछे-पीछे आएगा,
सबकी जुबां पर तेरा नाम छाएगा,
कुछ कर,
कुछ धर,
न आने दे नौबत
अपने ही बालों को नोचने की,
कोशिश कर तो सही
कुछ अच्छा सोचने की,
दिख रहा है मुझे तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल,
चल जल्दी इस लाइन में चल।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554