कविता

जीवन चक्की

पीस देती जीवन चक्की में
अपने सारे सुनहरे स्वप्न,
फिर भी त्याग कर उनको
मिलती उसे खुशियाँ अनंत।

कई बार पीस जाती उसमें
उनकी सारी कल्पनाएँ
पूर्ण होने को की, प्रभु सम्मुख
न जाने कितनी याचनायें।

भावनाओं को कुम्हार की भाँति
देती रहती नित नये आकार।
दबा कर के सपनों को सारे
जो मिला उसका करती आभार।

पीस जाती उसकी कविता
घिस जाती उसकी तूलिका,
मुस्कान के पीछे आँसू छुपा
निभाती रहती कई कई भूमिका।

कभी प्रेयसी कभी बनती प्रेमिका
अपने चित्रपट की वो तो है नायिका।
जिंदगी की झंझावतों में सिमट कर
वो हाड़ मांस कमनीय रमणिका।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]

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