कविता

कविता

लहरों जैसा है ये जीवन,
उतार चढ़ाव में जीता जन जन,
दुःख सुख इसकी है काया,
धूप छांव सब कुछ है माया,
रूप है इसका बड़ा निराला,
चलते रहना भले पांव में छाला।।
कभी आंसू तो कभी है मुस्कान,
आंख और होंठ है इसकी पहचान,
सांसे चलती दिल धड़कता,
तब तक भ‌इया ताता थैया,
जब पिंजरे से पंक्षी उड़ जायेगा,
तब जन जन शोर मचाएगा,
राम राम बस राम जपो प्यारे,
जीवन का यही सार सुनो सारे

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

पता- 15a राधापुरम् गूबा गार्डन कल्याणपुर कानपुर

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