नजर
नजर आता है
हर शख्स नजर आता है
हलचल है भीड़ है
शहर भाग रहा है
लोग दौड़ रहे हैं
हर शख्स जल्दबाजी में
नजर आता है
हर शख्स से अलग
वो नजर आता है
सफर दूर का हो
सफर नजदीक का हो
ट्रेन पकड़नी हो
पैदल ही सफर करना हो
सब हड़बड़ी में नजर आता है
वो दूर से ही सही
वो नजर आता है
गीत गाता है कोई
शोर मचाता है कोई
रूठता है मनाता है कोई
ठोकरें खाता है गिराता है कोई
सम्हलता है सम्हाल लेता है कोई
गोया ख्यालों में है
ख्याल में कोई और नजर आता है
असमंजस सी है
थोड़ी उलझन भी है
राहें हैं मंजिल का पता नहीं
कौन राही है कौन हमसफर
यहां मांझी पार लगाता है
कौन कबतक साथ निभाता है
सब परेशां परेशां सा नजर आता है।
— बबली सिन्हा ‘वान्या’