प्रदीप छंद
दीप
राह दिखाता दीप सदा ही, रखना द्वारे पार ही।
भूल न जाये सुनो बटोही, अभी किसी का द्वार ही।।
आशा के दीप जलाने का, प्रयत्न हमें करना है।
देख उजाला भर लें ऊर्जा, दुख सभी का हरना है।।
किसी आँख से बहें जो अश्रु , मोती ही बना देना।
जिस कुटिया में अँधियारा हो, वहाँ दीप जला देना।।
न्याय पंथ ही धर्म पंथ हो, तज दो झूठ अब सारे।
छू लो तुम नीले अंबर को, पंख साहस के धारे।।
चाँद
राह दिखाता रहे चाँद भी, देखो जगती आस ही ।
खेलें चाँदनी देख सारे, ले मन में विश्वास ही।।
दृश्य सभी दिखते हैं सुंदर, चाँद ही मन को मोहे।
फूल खिले सुगंधित देख लो, उपवन बहुत ही सोहे।
निकला चाँद सुहागन देखे, छलनी से ही निहारे।
बुला रही अपने साजन को, देखा आये सामने।।
तोड़े व्रत वह अपना फिर ही, साजन पानी पिलाये।
खाये मिठाई सजन से वह, फिर चाँद खिलता जाये।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘