लघुकथा – लड़ाई
तुमको बात का करने का कोई तरीका ही नहीं आता, कुछ भी बोल देते हो। जरा सोच लिया करो,कि जो कुछ कह रहे हो कोई तुमसे कहेगा तो तुम्हें कैसा लगेगा। रमेश की पत्नी ने समझाते हुए कहा।
रमेश-ऐसा क्या कह दिया मैंने तुम्हें बात बढ़ाने कि आदत सी पड़ गई है। तुम अगर मुझसे झगड़ा नहीं करोगी तो तुम्हारा खाना न पचेगा करता? अच्छा ठीक है मेरी गलती है इसमें मैं मानता हूं अब
मैं तुमसे कुछ न कहूंगा। बिल्कुल चुप रहूंगा। वैसे भी मैं बोल के क्या कर लूंगा मेरी चलनी थोड़ी न है।
रमेश की पत्नी ने कहा-अरे अच्छी बात है तुम्हे जल्दी समझ में बात आ गई। वरना झगड़ा अभी और लंबा चलता।और मुझसे कौन जीत पाया है जो तुम जीत जाओगे
— अभिषेक जैन