आस्तीन का साँप
-1-
न उँगलियों में हलचल /
न था कोई निशान /
लगता है.. आज फिर डस गया /
विश्वास के किसी को /
छुपा हुआ…
आस्तीन का साँप
-2-
हैं मानव /
पर चाल से अपनी /
देते हैं विषधरों को मात /
जतलाते हैं अपनापन /
… कहीं घात लगाए /
तो कहीं छुपे हुए /
रहतें हैं आसपास /
आस्तीन के साँप।
— अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’