टीस
क्या हुआ मानसी? सब अंदर है और तुम घर के पीछे क्यों खड़ी हो? इतना कहना था कि वह फूट-फूट कर रो पड़ी।ढ़ाई सालों के बाद वह अपने मायके आई हुई थी। आयी तो थी मायके किंतु अत्यंत दुखद परिस्थिति में, अपने पिता के देहांत के समय। वैसे हर साल मानसी अपने पति और बच्चों के साथ गर्मी की छुट्टियों में मायके आया करती थी।सभी भाई बहन के आने से घर का वातावरण बहुत ही गुलज़ार था और उसके पिता की एक पाँव घर में और एक पाँव बाजार में रहता था। नाती पोतों से भरा घर पाकर वह ख़ुशी से फूले रहते थे।
एक साल वह अपने मायके नहीं गई। मानसी के पति को काफी सीरियस हार्ट अटैक आया था। डॉक्टरों ने कहा कोई चांस ही नहीं है कि उनके जीवन की रक्षा की जा सके,लेकिन कहते हैं ना “जाको राखे साइयां मार सके ना कोय”।डॉक्टरों के अथक प्रयास और लोगों की प्रार्थनाएं ने उन्हें जीवन दान दिया किंतु उन्हें कहीं भी आने जाने से मना किया गया था। काफी परहेज और देखभाल की जरूरत थी इसलिए मानसी ढाई वर्षो तक मायके नहीं आ पाई। तब फ़ोन की भी बहुत सुविधा नहीं थी।
इन दो वर्षों में मानसी के पिता की तबीयत भी काफी खराब हो गई थी उन्हें भी हृदय रोग डायबिटीज ने जकड़ लिया। अंततः वह देवलोक में विलीन हो गए। घर के सारे सदस्य तो आ गए थे दाह संस्कार के वक्त लेकिन मानसी किसी कारणवश नहीं आ पाई थी। वह दाह संस्कार के तीसरे रोज आयी सपरिवार।उसे इस बात की टीस थी कि बीते दो वर्षों में उसने अपने पिता को देखा तक नहीं। उसके पिता में क्या-क्या बदलाव आया, वह कैसे दिख रहे थे।यह सोच सोचकर वह घुटती जा रही थी। लेकिन कुछ कर भी नहीं सकती थी। एक तरफ पति को संभालना था दूसरी तरफ पिता। बड़ी मुश्किल की घड़ी होगी यह मानसी के लिए।
सबके जीवन में ऐसी कुछ ना कुछ समस्याएँ आती रहती हैं। जिसे हम सबको जीना ही है। किसी के अभिभावक या किसी के अजीज या किसी की भी मृत्यु हो जाती हैऔर ये खबर मिलता है कि उसे अब आना है तो बीच का वक्त यानी कि उसके अपने घर से निकलने से लेकर के गंतव्य तक पहुंचने तक की जो अवधि होती होगी वह जानलेवा होती है। ये सोच कर ही हृदय सिहर उठता है।
— सविता सिंह मीरा