कविता

स्त्री

देखिएगा कभी गौर सेस्त्रियां मन पढ़ लेती हैं वो पढ़ लेती हैं बोले गए शब्दों की हकीकत उनकी जमीन तुम प्रेम जताओगे चिंता गहन दिखाओगेउसे पाश में बांधने को जतन हजार लगाओगे तुम खाली हाथ रह जाओगे जो स्त्री को छलना चाहोगेवो बहेगी प्रारंभ में उन्मुक्त हंसेगी , हर प्रपंच मेंहाथ भी थामेगी कांधे पर तुम्हारे सर टिका कर घंटों फारसी सी बातें तुम्हारी सुनती जायेगी क्योंकि वो मोह में होगीया पहले से टूटे दिल को जोड़ रही होगीवो फिर से संवरना चाहेगी खुद को एक और बार पूर्ण करना चाहेगीलेकिन फिर इसी बीच वोतुम्हारे लाल रंग के पीछे पीत रंग को भांप लेगीवो देख लेगी तुम्हारा जर्द चेहराकमजोर मन , दोहरा चरित्र और बिना रीढ़ व्यक्तित्वअब तुम्हारे प्रेम शब्दों की दुर्लभ लिपि में लड़खड़ाएगी जान जायेगी हर्फ हर्फ तुम्हारी हकीकत प्रेम के पीछे छिपे स्वार्थ को वो आंखों से पढ़ कर के भी मुस्कुराएगी तुम्हें लगेगा वो आज भी तुम्हें सुनती हैपर वो तो कबका अपना दिल बंद कर चुकी होगीवो कानो से सुनकर होंठो से मुस्कुराएगी और आंखों से कुछ और गहरा तुमको मापती जायेगीतुम बहते जाओगे अपने ही बहाव मेंऔर मुड़ जाओगे आदतन उसी मोड़ परजहां वो तुम्हें नहीं देखना चाहती थीपर मौके दे रही थी कि काश तुम इस बार ये न करोये प्यार ये दुनिया ये सहारे सब ध्वस्त हो रहेंगेवो तटस्थ हो पीछे कदम खींच लेगीतुम्हारे भंवर से खुद को बाहर धकेल देगीकारण भी होंगे , साथ बातें भी होंगीरोने , गाने के नाटक भी होंगेवो नही रुकेगी और न पलटेगीक्योंकि वो स्त्री है उसकी छटी इंद्री तुमसे कहीं ज्यादा मजबूत हैवो जान गई है तुम्हारे भीतर के स्वार्थ कोभावनाओं और शब्दों के दोगलेपन को

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733

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