कविता

हो सके तो

याद कर लेना अपने रहनुमाओं को,
जिसने सारी जिंदगी गुजार दी
तुम्हें जगाने में,
तुम्हें ऊपर उठाने में,
याद कर लेना हो सके तो,
भूल न जाना अपनी पिछली जिंदगी,
करनी पड़ती थी पग पग बंदगी,
तिस पर भी मानसिक प्रताड़ना,
बनते कामों को जब चाहे बिगाड़ना,
था खेल जिसके लिए
जीवन को उजाड़ना,
बहन,बेटियों को वहशी नजरों से ताड़ना,
इन सब बातों को सोच जीवन संवारना,
लड़ लेना हक़ खातिर हो सके तो,
कैसे पग पग रहनुमा लड़े थे,
बाहर बरामदे में बैठकर पढ़े थे,
प्यास लगने पर पीना पड़ता था अश्क,
मनुवादियों को रहता है जाति से रश्क,
परंतु इतना सहकर भी खुद को संभाला,
अश्पृश्यता,शोषण के भंवर से सबको निकाला,
काटकर सारे अमानवीय विधान,
लिख डाला इंसानों को इंसान मानता संविधान,
जय भीम बोल याद रखना हो सके तो,
प्रेम का प्यासा रहा सारा समाज,
महापुरुषों के दम पर फुदक रहा आज,
आस्था की चाशनी में क्यों डूबते हो,
अर्थ के पतझड़ से नित जूझते हो,
पढ़ना लिखना खुद को आगे बढ़ाना,
इंसान हो स्वयं को इंसानियत सिखाना,
बढ़ चुके बहुत ही आगे अब आगे ही बढ़ना,
तार्किकता की राह चल विज्ञान को पढ़ना,
बात मेरी मानना गर हो सके तो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554