एक पुरुष
हर बार एक पुरुष गलत नहीं होता
शायद! सभी नहीं मानते होंगे ये बात
पुरुष कठोर होता नहीं लेकिन बना दिया जाता है
लोहे की भांति चोंट पर चोंट देकर
ज्यादातर देखा जाए तो पुरुष के हिस्से
प्रेम से ज्यादा जिम्मेदारियां आती हैं
जो निभाई जाती है आखिरी सांस तक
उसे प्रेम मिलता नहीं मिलती है तो बस दायित्व
सूरज की तरफ देखते रहने का
हर एक कालखंड में
पुरुष को पूरा प्रेम करने वाली स्त्री जानती है
की वो
अथाह प्रेम ,सरलता और कोमलता का स्त्रोत होता है
जो
स्त्री के आगोश में पिघलता है
ग्लेशियर की तरह
रो तक लेता है
आसमां से जैसे गिरे बारिश
और बन जाता
है एक मासूम अबोध बालक
जो मचलना चाहता है
बंधन मुक्त होकर
प्रवीण माटी