कविता

दीपावली

दीप धरो कई आज द्वारे, करना उजियार।
भूलें न राहें पथिक प्यारे, करो यह विचार।।
दीपक का उजियारा सारा, मिटाये विकार।
धर्म से कर्म जो है धारा, अब करो प्रचार।

करो समाप्त असत्य धारा, करे जो प्रसार।
मीठे – मीठे बोल सभी के, बहती रसधार।।
मन के अब ही दीप जलाओ, मचती अब धूम।
कहते अब पटाखे चलाओ, देखो सब झूम।।

दिवस दीपावली का आया, दें प्रभु अब साथ।
जीवन में खुशियाँ ही देना, रख सिर पर हाथ।
तोरण बाँधो खुशियों का ही, जाये सज द्वार।
बनाओ द्वार पर रंगोली, लाओ अब हार।।

आ रहीं माँ लक्ष्मी सजाओ, सिंहासन आज।
पूजा कर दीप जलाओ हो, लक्ष्मी का राज।।
शुभम दिवाली लेकर आयी, चमकें जगमग द्वार।
भरते आशीषों से रहते, सारे भंडार।।

जलते दीपक टिमटिम करते, चहुँओर प्रकाश।
गले लगायें माता देखो, खुले बाहुपाश।।
आये राम अभी मन में है, पलता विश्वास ।
विधनी से रहे धनी तक ही, लक्ष्मी की आस।।

चढ़ना मानवता की सीढ़ी, निम्न कोटि देख।
खरीद माटी – दीप उन्हीं से, खींच प्रेम – रेख।।
सुख संपदा मिले सबको हो, सच्ची भावना।
दीपावली की आज देते, हैं शुभकमना।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘