कविता

गुलदस्ता

मैं फूल से बना एक गुलदस्ता हूँ,
मैं चुभती हुयी कांटो से कहीं अच्छा हूँ।
मैं तने से अलग होकर खामोश हूँ,
फिर भी तुम्हारे लिए संदेश लेकर आया हूँ।
मैं तने से अलग होने के दुःख को भुलकर,
तुम्हारे लिए सुभ संदेश लेकर आया हूँ।
मैं सामने वाले के हाथ में,
बधाई का माध्यम बनकर आया हूँ।
मैं तुम्हें सामने वाले के मन की बात बताने आया हूँ,
मैं तुम्हें आशीष, शुभकामनाएं देने आया हूँ।
मैं अकेला ही नहीं आया हूँ,
मैं अपने साथ कई फूल और साथ लाया हूँ।
मैं कांटे को तने में ही छोड़कर,
तुझसे मिलने गुलदस्ता बनकर आया हूँ।
मैं तुम्हारे लिए कई तोहफे लेकर आया हूँ,
मैं देने के लिए अशेष शुभकामनाएं साथ लाया हूँ।
मैं तुम्हारे प्रसन्नता का भागीदार बनने आया हूँ,
मैं तुमसे अपनी मित्रता जताने आया हूँ।
मैं चंचल मन से तुमसे मिलने आया हूँ,
इसलिए, मैं गुलदस्ता बनकर आया हूँ।

— हितेश्वर बर्मन चैतन्य

हितेश्वर बर्मन चैतन्य

डंगनिया (कोसीर), सारंगढ़ , छत्तीसगढ़ email - [email protected]