डिफॉल्ट

चुनाव

चुनावी बिगुल बज उठा 

घर घर हाथ जोड़े 

पधारने लगे प्रत्याशी 

खुद को जो कहते 

सेवक जनता के 

जनता घूमे फटे हाल 

वह घूमें बड़ी बड़ी कारों में 

सेवक बन चुन के आते 

बन जाते हैं फिर आका 

जनता के हाथ में थमा झुनझुना 

खुद खाते माल मलाई 

आमदार खासदार कहलायें 

इनके पाप सभी धुल जाते 

जनता तरसे न्याय को 

पैरोल पर छूट आनंद मनाएं 

जनता घिसे ऐड़िया जेल में 

यह लोकतंत्र है 

यह करते व्यवहार राजतन्त्र सा 

जनता होती जाती और गरीब 

यह करते दिन रात तरक्की 

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020

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