विशाल जग में हम
बहता पानी क्या कहता है?
अणु – अणु में फैली वायु
हमें क्या सिखाती है?
विशाल जग में व्याप्त
धरती का क्या बोध है?
अनंत आकाश को देखो
असीम उनका आकार
अजीब कभी नहीं लगता?
हम पढ़ते हैं बचपन से, छुटपन से
अंतिम सांस तक हम मनुष्य
अपने आपको जानने में भी
असमर्थ बन बैठे हैं? हाय रे!
वर्ण, वर्ग, प्रांत, भाषा, लिंग
जाति, धर्म की लकीरों से मुक्त
मनुष्य नहीं बन पाये!
सुख – भोग का दाह
बुझेगा कब? स्वार्थ के विकार से
होगी मुक्ति कब?
घुमक्कड़ बनो
ज्ञान का विकास
दूसरों से सीखने से होता है
विचारों के साथ चलने से
तर्क – वितर्क से, चिंतन – मंथन से
अनुभव के बल पर
उसकी पुष्टि होती है
हमारे महान नेता सभी
देश – विदेश घूमनेवाले थे
संत – ज्ञानी, महात्मा
झरने थे वे
बहते पानी बनकर
जनता की प्यास बुझाये थे
विशाल जग में हम
एक बिंदु के समान है
जोड़ने से एक दूसरे से
मिलने से आपसी भेद – विभेदों से
मुक्त होकर
एक दूसरे को स्वीकार करने से
शक्तिमान बनता है मनुष्य
सबसे पहले मनुष्य के धरातल पर
सहज एवं सामान्य जिंदगी के
मूल में छिपी उस रहस्य को जानने से
प्रेम, सेवा, समर्पण जैसे
मानवीय मूल्यों से
प्रकाशमान रहता है जग में।