कविता

विशाल जग में हम

बहता पानी क्या कहता है?
अणु – अणु में फैली वायु
हमें क्या सिखाती है?
विशाल जग में व्याप्त
धरती का क्या बोध है?
अनंत आकाश को देखो
असीम उनका आकार
अजीब कभी नहीं लगता?
हम पढ़ते हैं बचपन से, छुटपन से
अंतिम सांस तक हम मनुष्य
अपने आपको जानने में भी
असमर्थ बन बैठे हैं? हाय रे!
वर्ण, वर्ग, प्रांत, भाषा, लिंग
जाति, धर्म की लकीरों से मुक्त
मनुष्य नहीं बन पाये!
सुख – भोग का दाह
बुझेगा कब? स्वार्थ के विकार से
होगी मुक्ति कब?
घुमक्कड़ बनो
ज्ञान का विकास
दूसरों से सीखने से होता है
विचारों के साथ चलने से
तर्क – वितर्क से, चिंतन – मंथन से
अनुभव के बल पर
उसकी पुष्टि होती है
हमारे महान नेता सभी
देश – विदेश घूमनेवाले थे
संत – ज्ञानी, महात्मा
झरने थे वे
बहते पानी बनकर
जनता की प्यास बुझाये थे
विशाल जग में हम
एक बिंदु के समान है
जोड़ने से एक दूसरे से
मिलने से आपसी भेद – विभेदों से
मुक्त होकर
एक दूसरे को स्वीकार करने से
शक्तिमान बनता है मनुष्य
सबसे पहले मनुष्य के धरातल पर
सहज एवं सामान्य जिंदगी के
मूल में छिपी उस रहस्य को जानने से
प्रेम, सेवा, समर्पण जैसे
मानवीय मूल्यों से
प्रकाशमान रहता है जग में।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।