कविता

सपने

रात को सपनों में आते
कोरे पन्नों पर आकार ले जाते
ये शब्द
कोलाहल करते हैं
कोई भी विराम नहीं है
ये नहीं किसी से डरते हैं

कभी कविता बनते
कभी स्याही की दवात
कभी कहानी गढ़ते
कभी करते मेरी बात
कभी दर्द बयाँ करते
कभी खुशी की लहर
कभी बनते हैं मोड़ एक
कभी बनते एक लंबा सफ़र
कभी मुस्कुराहटें लिखते
कभी लिखते हैं गम
जो मान के बैठी है ये दुनिया
भीतर से ऐसे नहीं हैं हम
कभी कभी शांत हो जाते
कभी एक अक्षर में ज्वालामुखी दर्शाते

सुनो
कभी इन्हें छु कर देखना
अपने लबों से
महक होगी जरूर
यादों की

मेरी याद्दाश्त कमजोर हो गई है
मगर तुम पहचान लेना
आखिर
सपनों में कौन अजनबी है!

प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733

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