पर्यावरण

स्वच्छ पर्यावरण

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस तरह से वह अपने जीवनचर्या का क्रियान्वयन और परिणाम का निर्धारण करता है, वैसा ही आगे उसके सामने आता ही है। चाहे वो निजी, पारिवारिक या सार्वजनिक जीवन हो।
     ऐसा ही कुछ पर्यावरण के साथ है। आज जब दुनिया तकनीक की बदौलत विकास के नव आयाम स्थापित करने पर आमादा है, उसे पूरी तरह अनुचित तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सही भी नहीं कहा जा सकता। उसका कारण यह है कि हम विकास की आड़ में पर्यावरण ही नहीं प्रकृति की भी अनदेखी जो कर रहे हैं।
      स्वच्छ पर्यावरण हमारी जरूरत के साथ हमारा अधिकार भी है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि पर्यावरण की स्वच्छता और संतुलन की जिम्मेदारी भी हमारी ही है।
        बढ़ते शहरीकरण, कृत्रिम संसाधनों का बढ़ता दायरा, असंयोजित आवासीय, औद्योगिक निर्माण, स्वच्छता को नजरंदाज करने की बढ़ती प्रवृत्ति, अव्यस्थित कूड़े कचरों का ढेर, रीसाइकिल के प्रति निष्ठुरता, औद्योगिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरों का बढ़ता बोझ, जल निकासी की समस्या, सीवरों, नाले, नालियों की समुचित साफ सफाई का अभाव, धार्मिक नगरों/क्षेत्रों में श्रद्धालुओं द्वारा फेंके कचरों का बढ़ता बोझ खतरनाक साबित हो रहा है। नदियों, नालों, सरोवरों, तालाबों और जल स्रोतों पर बढ़ता अतिक्रमण, सड़कों पर बढ़ते वाहन, घटते जंगल, घटते पेड़ पौधे, घटती हरियाली और प्राकृतिक दोहन भी स्वच्छ पर्यावरण की राह में रोड़े अटका रहें हैं।
        आज जरूरत है स्वच्छ पर्यावरण की। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, समाज को इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी समझने की, सिर्फ शासन प्रशासन के भरोसे इससे पार पाना संभव नहीं है, और न ही सिर्फ पेड़ लगाने भर से इसका हल होगा। स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रकृति से जुड़ना होगा, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और विकास करना होगा। जल, जंगल, जमीन से जुड़़कर उनका संरक्षण भी करना होगा। तभी स्वच्छ पर्यावरण का उद्देश्य पूरा होगा।
        अब भी थोड़ा बहुत समय हमारे पास है, जिसे नजर अंदाज करना भयावह हो सकता है। कोरोना काल में हम सबने इसका सिर्फ ट्रेलर देखा है। यदि हमें पूरी फिल्म देखने की उत्सुकता नहीं है, तो संभल जाइए, वरना बहुत देर हो जायेगी और हमारे आपके हाथ से इसकी डोर फिसल जायेगी और तब हम सिर्फ हाथ मलते रह जायेंगे। यही नहीं यदि हम अपनी अगली पीढ़ी को बेहतर भविष्य देना चाहते हैं तो भी हमें आज अपनी जिम्मेदारी समझ लेनी चाहिए। वरना विरासत में हम उन्हें धन संपत्ति के साथ मौत का कुंड भी सौंप कर दुनिया से विदा होंगे। जिसके लिए हमारे ही बच्चे हमें आपको माफ करेंगे, इस मुगालते में भी मत रहिए।
      स्वच्छ पर्यावरण के अभाव में ही हर प्राणी की प्रतिरोधक क्षमता में तेजी से गिरावट आ रही है, जिसका दुष्प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और वे बीमारियों के बोझ तले दबते जाने के साथ अपनी गाढ़ी कमाई दवाइयों पर खर्च करने को विवश हो रहे हैं। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। गरीब लोग तो कर्जदार भी हो रहे हैं।
       तो आइए! हम सब अपनी जिम्मेदारी समझें और स्वच्छ पर्यावरण के लिए संकल्पित होकर अपने घर, और उसके आसपास की स्वच्छता को जीवन का हिस्सा बनाकर आज और अभी से ही शुरुआत करें। क्या पता कल हम ही इसके शिकार न हो जाएं, जिससे हमारे बच्चों, परिवार, समाज और राष्ट्र को इसका दंश झेलना पड़े।
      

*सुधीर श्रीवास्तव

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