तुम्हारी बेरुखी
तुम्हारी बेरुखी फिर मुझको न रुसवा कर दे
फिर न एक बार मुझे ख़ुद में अकेला कर दे
मैं जानता हूं मोहब्बत की ये तवानाई
अगर वो चाहे तो तन्हाई में मेला कर दे
मैं रोशनी में अंधेरे भरे रखूँ दिन याद
कि मेरे सहन में कोई इतना उजेला कर दे
है दर्द इतना समाता नहीं है इस दिल में
ख़ुदाया तू मेरा पत्थर का कलेजा कर दे
मैं दास्तान – ए – मोहब्बत छुपाए बैठा हूँ
अगर वो चाहे तो एक रोज़ ख़ुलासा कर दे
— ओम निश्चल