तेरी शिकायत
तेरी मेहरबानी का किस्सा सबको सुनाया।
अंधा समझ हाथ पकड़ तूने रास्ता दिखाया।
अब तो तेरी शिकायत करें भी तो किससे।
सबके दिलों में तुझे हमने ही बसाया।
तू चाहे अब जितने सितम कर ले इस पर।
सहता चल बस यही दिल को समझाया।
हर बार दिखाते रहे तुम आईना हरेक को।
हर बार तूने चेहरा अपना आईने से छुपाया।
दिल पीछे तुम्हारे यहां बहां दौड़ता रहा ।
तूने खुद को हर बार स्वर्ण हिरण बनाया ।
आए हो जब जब भी मुश्किल में तुम।
बे झिझक गैरों के साथ हमें अपना बताया।
— सुदेश दीक्षित