मेहनत की कमाई
लघुकथा
मेहनत की कमाई
“सर, आपके चार समोसे के पचास रुपए होंगे। प्लीज आप चेंज पचास रुपए दीजिए। मेरे पास चिल्हर नहीं है।” प्लेटफार्म नंबर एक पर घूम-घूम कर समोसे बेचने वाले लड़के ने कहा।
“अरे भाई, मेरे पास भी चिल्हर नहीं हैं। देखो, तुम्हारे किसी परिचित के पास हों, तो।” शर्माजी ने कहा।
“ठीक है सर। मैं कोशिश करता हूँ।” लड़के ने कहा।
शर्माजी ने देखा कि वह लड़का दौड़-दौड़ कर वहाँ आसपास में खाने-पीने की चीजें बेचने वाले तीन-चार अन्य लोगों से शर्माजी के द्वारा दिए हुए सौ रुपये के नोट की छुट्टे माँग रहा है।
इस बीच ट्रेन चल पड़ी। लड़का दौड़ते हुए आया और चिल्लाकर बोला, “सर प्लीज अपना विजिटिंग कार्ड फेंकिए या पेटीएम या फोन पे नंबर लिखकर फेंकिए। मैं किसी को बोलकर आपके बचे हुए पैसे लौटा दूँगा।”
शर्मा जी ने अपना विजिटिंग कार्ड नीचे फेंका, जिसे उस लड़के ने उठा लिया।
शर्माजी को सोच में पड़े देख मिसेज शर्मा बोली, “क्या सोच रहे हो ? गए आपके 50 रुपए।”
शर्माजी ने कहा, “कोई बात नहीं मैडम। पचास रुपए का जाना हमारे लिए कोई बड़ी बात नहीं। पर सोचो, हमारे पचास रुपए लौटाने के चक्कर में उस लड़के का कितना समय खराब हुआ। उतने समय में वह कुछ और समोसे बेचकर दो पैसे कमा सकता था। उसकी बॉडी लेंग्वेज से लग रहा है कि वह मेहनती ही नहीं, ईमानदार भी है।”
मिसेज शर्मा व्यंग्यात्मक स्वर में बोली, “हाँ-हाँ, आप तो ठहरे दानवीर कर्ण। आपको तो सभी लोग भले ही लगते हैं। पर मुझे अच्छे से पता है कि अब आपके पचास रुपए मिलने से रहे। भूल जाओ उसे और खाओ चुपचाप समोसे। वरना ये ठंडे हो जाएँगे।”
तभी फोन पर एक मैसेज आया, जो एक अनजान नंबर से उनके पेटीएम पर पचास रुपए जमा होने का था। साथ में एक संदेश भी, “सर, आपके बचे हुए पचास रुपए।”
शर्माजी ने मिसेज शर्मा की ओर विजयी मुस्कान के साथ देखते हुए कहा, “देखा। मैंने कहा था न।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़