लघुकथा

लघुकथा – बेबसी 

प्रयाग पुस्तक भवन के भव्य काउण्टर पर पुस्तकें देख रहे तुषार को एकाएक अपनी पसंद की पुस्तक मिल गई थी, जिसकी उसे सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के लिए सख्त जरूरत थी। तुषार ने झट उसे खरीदने का निर्णय ले डाला। पुस्तक की कीमत एक सौ चालीस रुपए थी। पुस्तक का मूल्य चुकाने के लिए उसने अपनी सभी जेबें टटोली, पैसे निकाले किन्तु यह क्या सब जोड़कर मात्र एक सौ तीस रुपए ही निकले। तुषार को मायूसी ही हाथ लगी। बुक सेलर से कोई परिचय भी न था कि वह दस रुपए उधार कर दे। उसे असमंजस में पड़ा देख काउंटर पर किताबें देख रही श्रुति ने पहल करते हुए दस रुपए देने की पेशकश कर दी। एक अपरिचित लड़की के इस कदम से तुषार एकाएक हड़बड़ा गया। आखिर वह श्रुति को दस रुपए वापस कैसे करेगा? उसके सम्बन्ध में वह कुछ जानता भी नहीं, न नाम न पता। उसके संकट को झट श्रुति ने जान लिया और कहा कि इन्हें वापस करने की जरूरत भी आपको नहीं पड़ेगी। अंततः तुषार ने पुस्तक की कीमत बुक सेलर को देकर पुस्तक खरीद ली। पुस्तक लेकर तुषार अपने कमरे पर पहुंचा वह कुछ अन्यमनस्क सा बिस्तर पर लेटे-लेटे श्रुति की नेकदिली पर विचार करने लगा। उधर श्रुति भी अपने भव्य आवास में बेड पर लेटे-लेटे तुषार की इस बेबसी पर दुःखी हो रही थी कि एक जरुरतमंद को पुस्तक खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। उसे अपने घर की अकूत धन -दौलत से घृणा होने लगी थी।

— वाई. वेद प्रकाश 

वाई. वेद प्रकाश

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