कविता

ज्येष्ठ की तपती दोपहर

पहाड़ की ठंडी हवाओं का मज़ा
लेने आते थे लोग जाते थे ठहर
ज़्यादा फर्क नहीं रहा अब पहाड़ और मैदानों में
आग उगलती है अब ज्येष्ठ की तपती दोपहर

बर्फ के ग्लेशियर भी अब पिघलने लगे हैं
इंद्र देव भी बरसते नहीं लगे हैं डराने
पानी जहां बहता था कल कल छल छल
बून्द नहीं पानी की सूखे हुए हो गए उनको ज़माने

बिगाड़ दिया इंसान ने धरा का संतुलन
गर्मी में भी सर्दी लगी है आने
बारिश कम हो गई सूखा है पड़ने लगा
आगे क्या होगा यह कोई नहीं जाने

पहाड़ देखने आते है बहुत पर्यटक
कचरा फैला कर हैं चले जाते
लोग हैं बहुत सीधे पहाड़ के
रह जाते हैं उस कचरे को उठाते

क्यों नहीं समझते पर्यावरण हो रहा है खराब
कुदरत को इन सब बातों का देना पड़ेगा जबाब
बर्फ पिघल रही ग्लेशियर सिकुड़ रहे साल दर साल
कैसे बचेगी मानवता कर ले मानव कुछ गुणा भाग

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र