ग़ज़ल
कभी सपनों से बाहर भी आया करो
हर दिन-रात मुझको सताया करो
साथ हमने बिताये सुनहरे जो पल
उन पलों को कभी मत भुलाया करो
मत रखो कोई राज दिल में छुपा
कुछ मुझे भी तो दिल की बताया करो
बात की बात में दिन गुजर जायेंगे
सुनो मेरी, व अपनी सुनाया करो
“अंजान” ये दूरी नहीं है भली
गले से लगो और लगाया करो
— डॉ. विजय कुमार सिंघल “अंजान”