गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सापों को दूध पिलाया ये पागल है।
तू यह क्या चांद चढ़ाया ये पागल है।

पहले इस सम्मेलन में प्रधान बड़े,
किस-किस को और बुलाया ये पागल है।

पहले तेरे ऊपर इतना फर्ज़ा है,
घर को खूब सजाया ये पागल है।

महफिल के दस्तूर ज़रूरी होते हैं,
एैसे क्यों जाम उठाया ये पागल है।

कल को तेरे ऊपर इल्ज़ाम लगाएगा,
मूर्ख को समझाया ये पागल है।

सुन, ढसने से वे बाज कभी ना आऐंगा,
सर्पों को पकड़ बचाया ये पागल है।

यारों को क्यों भद्दे बोल सुनाता है,
दूध में ज़हर मिलाया ये पागल है।

अपने भाई बहनों से यह क्या किया,
उगलियों ऊपर नचाया ये पागल है।

बिछडे साजन वापस कब फिर आते हैं,
अपना आप रूलाया ये पागल है।

पहले सारा घर तू चोरी कर ड़ाला,
घर से क्या और चुराया ये पागल है।

घर-घर तेरे दुश्मन पैदा होगे फिर,
बालम को यार बनाया ये पागल है।

— बलविंन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409

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