ग़ज़ल
कैसा दिखता है अंतरालों में
उम्र के साथ श्वेत बालों में
ढूंढते हम रहे जवाब सदा
पर भटकते रहे सवालों में
कैसे हम अनुष्ठान रच पाते
उम्र यह कट गई बवालों में
हम तो ताउम्र कलम घिसते रहे
नाम आया न पर रिसालों में
जिससे संभव नहीं है मिल पाना
सोचता हूं उसे ख़यालों में
— ओम निश्चल