ग़ज़ल
मौत के बिन ही मर के मत बैठो
हाथ पे हाथ धर के मत बैठो
जब तलक जान शेष है तब तक
ख़ुद को लाचार कर के मत बैठो
ख़ाक सब डालने को आतुर हैं
कब्र में ख़ुद उतर के मत बैठो
मत करो राज़ पास तुम सब पे
अपने पर ख़ुद कतर के मत बैठो
मंज़िलों की तलश है तो यूँ
राहे मुश्किल से ड़र के मत बैठो
छोड़ जाएंगे साथ अपने भी
टूट के यूँ बिखर के मत बैठो
जिससे कड़वाहटें बढ़े बंसल
मन में वो बात धर के मत बैठो
— सतीश बंसल