कविता

सत्य बाहर निकल रहा

हम कभी दबकर रहे नहीं,
बेशक हमें दमित दिखाया गया,
इतिहास के झूठे पन्नों में
हमें ही भीरु बताया गया,
कुछ चालाक प्राणियों के द्वारा,
झूठ पर झूठ फैलाया गया,
डरपोकों को सुपर पावर बताया गया,
यह सब दो प्रमुख विचारों
मानवतावादी और अमानवतावादी
के बीच हुए द्वंद्व का रूप है,
सत्य को छिपाने वाले उच्च व सुंदर
और सत्य अपनाने वालों का
लिखा गया चेहरा कुरूप है,
हमारा हर काम चालबाजों ने
जग में उल्टा ही दिखाया है,
हजारों बार बोल बोल
इतिहास ही उल्टा लिखाया गया है,
तमाम प्रकार के प्रपंच,प्रतिबंध मान्यताएं
केवल हमें बांधकर रखने का तरीका था,
ये चंद लोगों के न्याय के नाम पर
बिना किसी बंधन स्वतंत्र चलने का
उनका नीति,नियम,सलीका था,
थी संगठित न रह पाने की मजबूरी,
रोड़े इतने बन जाती पेट की अगन जरूरी,
सच्चाई वो नहीं जो सुनाते आये हैं आप,
रटा रटाया प्राचीनता का राग आलाप,
सत्य बाहर आने के लिए उबल रहा हैं,
जो हर जगह खुदाई में निकल रहा हैं।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554