लघुकथा

सवाल

‘ये अपराध कम क्यो नही होते , कही चोरी तो कहीं हत्या, तो कहीं बलात्कार. ये तो रोज की बात हो गई है
कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे इन पर लगाम लगाई जा सकती।’
रमेश मन ही मन सोच रहा था। तभी बाहर से आवाज़ आई । रमेश “तुमने आज का अखबार पढ़ा?
“नही दादा जी नहीं पढ़ा। क्य आया है उसमें। फिर से कुछ हों गया क्या. ये अपराध रुपी दानव बढ़ता ही जा रहा है। कुछ न कुछ रोज होता रहता है। क्यो दादा जी अब क्या हो गया?”
“रमेश तुम्हें पता नहीं हमारे गली में रहने वाले मनमोहन जी के खाते से पांच रूपए निकाल लिए”
“कैसे”
“एक काल आया था कि मनमोहन जी बधाई हो आप हमारी योजना के लकी विजेता बने हो। आप पूरे पचास लाख रूपए जीते हैं। आपकों ये पैसे चाहिए या नहीं?”
रमेश- “आगे क्या हुआ?”
दादा जी” बताता हूं. अगर आपको पैसे चाहिए तो आपको अपना बैंक खाता देना होगा। और मोबाइल नंबर भी मनमोहन जी खुश के मारे कुछ सोच ही नहीं पाए और वो जैसा कहता गया वो करते गये. फिर एक ओडीपी आया वो भी बता दिया. फिर क्या पांच लाख रुपए ऐसे गायब हो गये जैसे आदमी गायब हो जाता है किसी से उधार लेकर। उन्होंने पुलिस शिकायत भी करवाईं है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अखबार में यही आया है। अब तो पढ़कर दुःख होता है।और दिल में सवाल आता है कि इतनी तरक्की का फायदा क्या है। इससे अच्छे तो हम बिना सुख सुविधा के थे.”

— अभिषेक जैन

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश