ग़ज़ल
टूटे हैं तार दिल के फिर प्यार क्या करें
मतलब से भरे लोग हैं इजहार क्या करें।
कब साथ चलते-चलते कहीं साथ छूट जाए
अपना यकीं नहीं तो उसपे एतबार क्या करें।
आंखों से गिरा आंसू लौटा है कब कहां
बहते हुए दरिया का इंतजार क्या करें।
तनहा सफर कटता नहीं मालूम है मगर
कहीं दिल लगाके दिल को बेकरार क्या करें।
मुमकिन नहीं है हमकदम बन साथ चल सकूं
कुछ पल के लिए खुद को गुनहगार क्या करें।
बेहोश रहूं जानिब या मैं होश में आऊं
है कशमकश में जान इकरार क्या करें।
— पावनी जानिब