लघुकथा

जब जागो, तब सवेरा

सर! दो दिन की छुट्टी चाहिये। गाँव में बाबू जी बहुत बीमार और माई के जाने के बाद अकेले हो गये हैं। उन्हें किसी तरह राजी करके अपने साथ ले आऊँगा। यहाँ उनकी दवा-दारू और देखभाल भी हो जायेगी,” महेन्द्र ने कहा।
“नहीं! तुम्हारे छोटे से घर में तुम लोगों को दिक्कत होगी। तुम कहो, तो मैं एक अच्छे से वृद्धाश्रम में बात करता हूँ। वहाँ उनकी समय पर देखभाल होगी और चिकित्सा भी। तुमलोग बीच-बीच में उनसे मिलने चले जाना। तुम्हें छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ेगी।”
“आप ठीक कह रहें हैं सर! यहाँ जगह की बात नहीं है, परिवार के बीच रहने की बात है। मेरी पत्नी हर दिन बाबूजी को घर लाने की जिद करती है,” महेन्द्र ने कहा।
“समझाओ उसे। भावनाओं से नहीं, व्यवहारिकता से सोचो।”
अपने साहब की बात सुनकर महेन्द्र बोला, “माफ करें सर! गरीब लोगों के घर में हम अपने बुजुर्गों को अपने साथ ही रखते हैं। बुजुर्ग भी नाती-पोते देख अपनी तकलीफ भूल जाते हैं।”
“महेंद्र गाड़ी मोड़ो।”
“क्यों सर! आफिस नहीं जाना है?”
“बाद में महेन्द्र! पहले वृद्धाश्रम चलो। वहाँ से मम्मी-पापा को लेना है।”

— डॉ. अनीता पंडा ‘अन्वी’

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected] 

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