जीवन-नैय्या
रजत स्वर्ण बनना चाहता था, पर पीतल भी नहीं बन पा रहा था.
लेखक था वह और उसकी #कलम खूब खूब चलती थी.
“जीवन जीना #सरल है, बहुत कठिन भी!”
“विश्वास करना सरल है, कराना बहुत कठिन भी!”
“रिश्ते बनाना सरल है, निभाना बहुत कठिन भी!”
ऐसे न जाने कितने उपदेश उसने लिख डाले थे!
पर कहते हैं न कि “पर उपदेश कुशल बहुतेरे…”
उसका भी यही हाल था. न तो उसका जीवन सही पगडंडी-राह पकड़ पा रहा था!
विश्वास तो किसी पर करता ही नहीं था, न उस पर ही कोई विश्वास करता था!
रिश्तों को संभालने की स्थिति से वह कोसों दूर था!
इसलिए उसकी जीवन-नैय्या डांवांडोल हो रही थी, अब संभल पाना कैसे संभव होगा, वह विचारमग्न हो रहा था.
— लीला तिवानी