हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – झोला छाप !

जब बिना वैध डिग्री प्राप्त किए ही गली- गली में डाक्टर साहब पुजने लगें तो कौन भकुआ किसी मैडिकल कालेज में आँखें फोड़ने और मोटी -मोटी रकम छोड़ने जाए!पढ़े- लिखे बड़ी पी एच.डी. और डी.लिट्.डिग्रीधारी प्रोफ़ेसर मास्साब कहलाएं और झोलाछाप डाक्टर की पदवी से पूजे जाएँ तो समाज की अज्ञानता और मूर्खता पर तरस आता है।किसी नामी गिरामी डॉक्टर के यहाँ हुक्का भरते -भरते जिनकी जवानी चुक गई,वे अपना झोला लटकाए बड़े डाक्टर साहब की पदवी से सम्मानित किए जाएँ। धन्य मेरे साँप – सपेरों वाले देश! जहाँ गुणियों का अपमान हो और निर्गुनिया गुणवंत कहे जाएँ,उसका भगवान ही रखवाला है।

इस देश में मास्टरों की बड़ी लम्बी कतार है।खास बात यही है कि सब एक ही पैमाने से नापे जाते हैं।एक ही डंडे से हाँके जाते हैं।अब वह चाहे विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का विद्वान प्रोफेसर हो या प्राइमरी स्कूल के मुंशी जी,उनकी नजर में सब मास्साब हैं। टेलर मास्टर,बैंड मास्टर,ट्यूशन मास्टर, कोचिंग मास्टर या प्रोफेसर सब मास्टर जी ही हैं।पाँच वर्ष को चुने गए प्रधान जी आजीवन प्रधान जी हो जाते हैं ,किन्तु आजीवन इनकी कई – कई पीढ़ियों का गुरु और प्रोफ़ेसर मास्टर के कद से ऊपर प्रोग्रेस नहीं कर पाता।

इस देश में झोलाछाप डाक्टर ही होते हैं।किंतु न डंडाछाप पुलिस थाना होता है न इंस्पेक्टर।न एस. पी. होते हैं न सी.ओ.(सर्किल ऑफिसर)। झंडाछाप नेतागण अपवाद हैं।वे तो गली -गली ,गाँव- गाँव और नगर -नगर मिल ही जाते हैं।देश की राजनीति के चाँद चमकाते हैं। स्क्रू ड्राइवर छाप इंजीनियर भी नहीं देखे- सुने जाते। उन्हें किसी बड़े इंजीनियर की टाँगों तले हुनर हासिल नहीं होते। उन्हें भी परिश्रम से पढ़ना और प्रेक्टिकल करना पड़ता है,तब बड़े इंजीनियर बनते हैं।यदि न्यायपालिका की बात करें तो जज ,वकील, बैरिस्टर,दरबार ब्रांड अदालतें सब असली ही मिलेंगे।उन्हें भी कानून की किताब विधिवत पढ़नी, समझनी और गुननी पड़ती है।यहाँ चपरासी और चौकीदार के लिए भी प्राइमरी या जूनियर हाई स्कूल की सनद चाहिए ही चाहिए। किन्तु झोले में इतने गुण हैं कि उसके लिए एम.बी.बी.एस. ; बी.ए.एम.एस. बी. एच.एम.एस.; एम .एस.; एम.डी.; डी.एम. कुछ भी आवश्यक नहीं हैं।यहाँ के अनुभवी दीर्घसूत्री बीमार दवाओं का सेवन करते -करते बड़े डाक्टर बन इलाज करने लगते हैं।

इस देश में पुलिस ,शिक्षक, वकील,जज, इंजीनियर,अधिकारी, क्लर्क,स्टेनो, कम्प्यूटर ऑपरेटर आदि सबसे सस्ता यदि कोई है तो वह डाक्टर ही है।जिसने बड़े -बड़े डॉक्टरों का काम हलका कर दिया है। आदमी की जान को सस्ते से भी सस्ता बना देने वाले ये झोलाछाप गली – गली, मोहल्ला – मोहल्ला, गाँव – गाँव , बस्ती -बस्ती में खोखा खोले हुए मिल जाएँगे।इस देश के आम आदमी की नजर में आदमी सबसे सस्ता है। उसके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने की पूरी छूट है।ड्रिप चढ़ाने से लेकर ऑपरेशन, डिलीवरी,इंजेक्शन, एक्स रे, रक्त आदि की जाँच,अल्ट्रासाउंड आदि सब मामूली काम हैं।बस पैसे होने चाहिए। पैसे से मशीनें खरीदो और मुहूर्त कर लो। काला कोट पहनकर कोई नकली बस्ताधारी अधिवक्ता नहीं दिखा। डकैतों को छोड़कर पुलिस वेश में वर्दीधारी एस.पी. या दारोगा नहीं मिला।प्राइमरी पास प्रोफ़ेसर की झलक नहीं मिली।बस डाक्टर ही डाक्टर। आदमी सबसे सस्ता है न ! इलाज करते -करते दो चार मर भी गए तो क्या ! रिश्वत देकर छूट ही जाना है !

झोलाछाप के झोले में टेबलेट,केप्स्यूल, सिरिंज, ड्रिप के साथ -साथ एक और चीज अनिवार्य है और वह चीज है चांदी का जूता। जब तक चले ,चलाते रहो और जब पकड़े जाओ तो कस के मुँह पर मारो चाँदी का जूता। इस जूते को सूँघने के बाद तो अच्छे – अच्छों का रॉब हिरन हो जाता है। झोलाओं के फलने -फूलने का यही एकमात्र कारण है।इस देश के किसी खास या आम आदमी से नैतिकता की उम्मीद करना चील के घोंसले में माँस खोजने के समान है।हाँ ,नैतिकता का उपदेश देने वालों से रँगे सियारों की तरह पूरा देश पटा पड़ा है।लोग भागवत कराते हैं, पर करते कुछ भी नहीं। सुनता कोई नहीं, मानता कोई नहीं।सारा उपदेश परोपकार के लिए है,अपने लिए कुछ भी नहीं। लोग हैं ही इतने उपकारी।अपनी माँ महतारी और दूसरे की लगे साली।जिस देश की नई और पुरानी पीढ़ी का चरित्र ही मर चुका हो,उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है ? सस्ते की मस्ती क्या कुछ न करवा दे! झोलाछापों के झोले में जिंदगी हरवा दे! उधर झोलाछापों को हलवा खिलवा दे। मँहगा रोए एक बार सस्ता रोए बार-बार। नैतिकता और चरित्र सब बेकार।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040

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