कविता

औरों के इशारे पर

मुर्दे भी कभी जागते हैं,
जागते ही अपने लक्ष्य की ओर
सतत सरपट भागते हैं,
सोचा है कभी मुर्दे जगे कैसे,
जिंदों ने उन्हें ठगे कैसे,
किसी ने उन्हें जगाने किये बड़े तप,
इंसानियत के हर रंग रूप जप,
जागे मुर्दों का आज कारवां चल रहा,
अत्याचारियों का दिल
धुंआ धुंआ जल रहा,
पर कुछ मुर्दे हरकत कर नहीं पाते,
जिंदा लाश रह आते जाते,
उन्हें उनके ही कुछ मरे लोगों ने छला है,
इन नामुरादों के कारण
उनके कौम की दुनिया जला है,
अनेकों मसीहा आए,
उन लाशों को बहुत जगाए,
पर एक मसीहा ने उन मुर्दों को
जगाने को ठान लिया,
उन्हें जगाने का तरीका जान लिया,
घूम घूम दुनिया भर सब कुछ सीख लिया,
समता,समानता और बंधुत्व वाला
विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान दिया,
पर कुछ मुर्दे आज भी
अपनी चिता लिए जाग रहे हैं,
खुद की मौत भूल औरों के इशारे नाच रहे हैं।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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