बधाई के बहाने
बधाई के बहाने
“हेलो, रमेश जी बोल रहे हैं न ?”
“हाँ जी सर नमस्कार। रमेश ही बोल रहा हूँ।”
“नमस्कार रमेश जी। मैं ग्वालियर से अमित सिंह बोल रहा हूँ। मैं भी एक छोटा-मोटा साहित्यकार हूंँ। आज के अखबार में छपी आपकी एक कविता पढ़ी। अच्छी लगी। उसी सिलसिले में बधाई देने के लिए फोन लगाया था।”
“धन्यवाद अमित जी। आपके जैसे सुधी पाठकों से बात कर प्रोत्साहन मिलता है।”
“जी जी, सो तो है ही। वैसे इस पत्रिका में रचनाएँ भेजने के लिए कोई ई-मेल आईडी या कांटेक्ट नंबर नहीं दिया है। क्या आप मेरे साथ शेयर करेंगे ?”
“हाँ हाँ, क्यों नहीं। अभी आपको व्हाट्सएप पर भेजता हूँ।”
“जी बड़ी मेहरबानी आपकी। अच्छा रखता हूँ फोन। याद से एड्रेस भेज दीजिएगा।”
और उन्होंने फोन काट दिया। इधर रमेश सोच में पड़ गया कि अमित बधाई देने के लिए फोन किया था कि पत्रिका की एड्रेस पूछने के लिए।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़