गज़ल
गगनचुम्बी भव्यता को देख लेकिन याद रख
इन शिखर की नीवँ मे कितने ही पत्थर है जडे
मंजिलोँ को पा के चेहरे खिल रहे उनके मगर
पाँव के तलुओँ मे उनके हैँ कई छाले पडे
जगमाती रोशनी सर पे उठा चलते हैँ जो
उनके पीछे काफिले कितने अंधेरोँ के खडे
दर्द समझेंगे भला हम पक्षियोँ का किस तरह
नन्हे नन्हे पंख ले उंचाईयोँ पर जो उडे
खौफ उनका हर तरफ , उंचा है उनका कद मगर
दिल की सुनी दुनिया मे वे बुत बने तन्हा खडे
वो शिलाऐँ जो ना टूटी कितनी ही चोंटेँ पडी
हमने देखा उनपे नाजुक रस्सियोँ के निशाँ पडे
— महेश शर्मा