सामाजिक

जैसे है वैसे ही रहिए”

आज कहीं पढ़ा कि, “नहीं बदल सकता मैं खुद को किसी और के लिए, एक लिबास मुझे भी दिया है रब ने तो क्यों न अपने हिसाब से रहूॅं। जिसने भी कही कितनी सुंदर बात कही। ज़िन्दगी में अनुभवों के आधार पर अपना स्वभाव कभी नहीं बदलना चाहिए। कई बार समय और परिस्थितियाॅं हमारे सामने ऐसी सिचुएशन खड़ी कर देते है कि, हम आहत होते तय कर लेते है कि आज के बाद ऐसा हरगिज़ नहीं करूॅंगा, या करूॅंगी। जैसे कि कोई अपनी दर्द भरी कहानी हमें सुनाता है और हम उसकी आर्थिक मदद कर देते है, लेकिन वो इंसान पैसे लेने के बाद न हमारा फोन उठाता है, न पैसा वापस देने की बात करता है; यूॅं समझो गुम ही हो जाता है। ऐसे में ज़ाहिर सी बात है हमें हर इंसान की नीयत पर से भरोसा उठ जाएगा।

कुछ दिन बाद दूसरा कोई आकर हमसे मदद मांगने आता है तो हमें क्या करना चाहिए? पीछले अनुभव के आधार पर मदद करने से साफ़ इन्कार कर देना चाहिए? या मदद करनी चाहिए? तो जवाब है, अगर ईश्वर ने आपको इस लायक बनाया है, आप आर्थिक रूप से समृद्ध है तो मदद करनी चाहिए। क्योंकि जरूरी नहीं दूसरा व्यक्ति भी पहले वाले की तरह धोखेबाज़ निकले। हो सकता है उसे सच में मदद की जरूरत हो। हो सके हमारी मदद से उनके बिगड़े काम संवर जाए। या हो सकता है मदद करने से मना करने पर उस व्यक्ति का नुक़सान हो जाए और बाद में हमें पता चलने पर पछतावा हो। लेकिन अगली बार थोड़ी छान-बीन के बाद मदद करें पर करें जरूर। ‘कर भला तो हो भला’ कहावत ऐसे ही नहीं बनी।

हर किसीके साथ ऐसा होता होगा कोई आपका फ़ायदा उठाकर चला जाए, मीठी-मीठी बातों से अपना काम निकलवा ले और आभार तक व्यक्त न करें। तो क्या उस वजह से हमें अपना स्वभाव बदलते उनके जैसा हो जाना चाहिए? बिलकुल नहीं क्योंकि दयाभाव, सज्जनता और सीधापन ही इंसान को इंसान बनाता है इसलिए अपने अंदर (प्योरिटी) यानि शुद्धता को बचाए रखिए क्योंकि कोई ग़लत व्यक्ति हमारा स्वभाव, हमारी मान्यता और हमारे संस्कार को बदल दें ये तो ग़लत है न। किसीकी धोखाधड़ी हमारे सुविचारित मानस पर हावी होते हमारे व्यक्तित्व पर वार कर जाए और हमें इंसान से पत्थर बना दें ऐसा मत होने दीजिए। आपका स्वभाव दयालु है यही अपने आप में बहुत बड़ी बात है। किसकी मदद करने के लिए भी जिगर चाहिए जो आज के दौर में बहुत कम लोगों के पास होता है।

बांस एक ही होता है लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कौनसा आकार देना चाहते है। तीर बनाकर किसीको घायल करना चाहते है, या उसी की बांसुरी बनाकर मधुर रस घोलना चाहते है। अच्छे कर्मों का फल फब किस रूप में हमारे सामने आता है पता नहीं चलता। पचास में से पाॅंच लोगों ने हमारे साथ ग़लत किया हो तो उसकी सज़ा हमें बाकी के पैंतालीस को नहीं देनी चाहिए। यकीन पर रिश्ते कायम होते है। अपने आप को बदलने की ग़लती न करें। खुद को पुरी तरह बदलकर अपने अस्तित्व को नकार देना तर्कपूर्ण नहीं। इंसान पर भरोसा कीजिए, प्रेम कीजिए, जरूरतमंद की मदद कीजिए। क्योंकि अच्छाई आपके खून में है और खून बदला नहीं जाता। जितना आप देंगे उससे कुछ ज़्यादा ही पाएंगे। देने और प्राप्त करने का नियम सफल और सुंदर जीवन का आधार है। सच मानिए किसी की मदद करने के बाद संतोष का अनुभव करेंगे। परिवार के लिए, मित्रों के लिए, स्टाफ़ के लिए हंमेशा आर्थिक और मानसिक तौर पर मदद करने के लिए तैयार रहिए। छोटे-छोटे कड़वे अनुभवों के आगे बड़ा दिल हारना नहीं चाहिए। सच्चाई और अच्छाई के दम पर तो दुनिया कायम है। अपनों के प्रति अच्छाई हमारी जिम्मेदारी है, कर्तव्य है। इसलिए बिना स्वयं को बदले, फल कि चिंता उपरवाले के उपर छोड़कर अपना कर्म करते रहिए।

— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर