बाल कविता

अंगों से सीख

काले भूरे गोरे रंग। देखो कितने सुंदर अंग।।
नयन सदा ही खुलते संग। देखें दुनिया बढ़े उमंग।।

नेक काज करते हैं हाथ। इक दूजे का देते साथ।।
सीख हमें देते हैं बाल। रखो एकता बनो मिसाल।।

आगे बढ़ते जाते पैर। मिलकर करते जग की सैर।।
मुख से निकले मीठे बोल। जीवन में देता मधु घोल।।

करे इकट्ठा भोजन पेट। भरता तन में शक्ति समेट।।
नाक एक है लेती श्वास। सिखलाती जीवन है खास।।

सदा सोचता रहे दिमाग। बड़ा अहम यह तन का भाग।।
इसके बिन होता ना काम। तनिक नहीं करता आराम।।

चलो करें अंगों से प्यार। कभी नहीं होंगे बीमार।।
स्वस्थ रहें गर ये सब अंग। करें नहीं जीवन भर तंग।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]