कृपा करो हनुमान
जीवन की हर आहुती, डाली जिसके नाम ।
वही कहे इस यज्ञ में, नहीं तुम्हारा काम ।
मेरे ही पदचिन्ह पर, चलने वाले लोग ।
सिखा रहे हैं मुझे ही, तीन – पांच का योग ।
कालनेमि चहुंओर हैं, हो कैसे पहचान ।
एक सहारा एक बल, कृपा करो हनुमान ।
— समीर द्विवेदी नितान्त