गीत/नवगीत

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है

नहीं कोई है अपना यहाँ पर, कोई नहीं पराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

संबन्धों का आधार भावना।

संबन्धों की होती साधना।

मस्तिष्क तो करता विश्लेषण,

लक्षित स्वार्थ की करे कामना।

कोई देता त्याग प्रेम से, दिल भी किसी ने चुराया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

सभी के अपने-अपने स्वारथ।

कहते हैं, उनको परमारथ।

प्रेम नाम ले लूट रहे नित,

राष्ट्रप्रेमी भी होते गारत।

अपने बन यहाँ लूट रहे हैं, फिर भी प्रेम दिखाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

झूठ, छल और कपट प्रेम है।

संबन्धों का यहाँ गेम है।

हत्या करते हैं जो यहाँ पर,

सम्मान में जड़ते वही फ्रेम है।

धन की खातिर हत्या होती, सब कुछ किसी ने लुटाया है।

गैरों ने भी गले लगाया, अपनों ने ठुकराया है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

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