गीत/नवगीत

राही हूँ, नहीं कोई ठिकाना

राही हूँ, नहीं कोई ठिकाना, किसी से विशेष संबन्ध नहीं हैं।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई बंध नहीं है।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

संबन्धों ने बहुत लुभाया।

अपने बनकर ठगते ठग हैं,

प्रेम नाम पर बहुत सताया।

प्रेमी ही यहाँ, प्राण हैं हरते, कैसे कहूँ? संबन्ध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई बंध नहीं है।।

जिसको देखो, अपना लगता।

हाथ में आया, सपना लगता।

अपने ही हैं, गला रेतते,

जीवन अब, वश तपना लगता।

स्वार्थ से रिश्ते जीते-मरते, बची हुई कोई, सुगंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई बंध नहीं है।।

संबन्धों की कैसी माया?

झूठे ही संबन्ध बनाया।

शिकार किया, फिर बड़े प्रेम से,

चूसा, लूटा और जलाया।

छल, कपट और भले लूट हो, प्रेम की मिटती गंध नहीं है।

नहीं चाहत, नहीं इच्छा कोई, तुम पर कोई बंध नहीं है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)