कविता

सुनो न…

मन व्यथित है कुछ कहने को
सुनने को कुछ तुमसे गुनगुनाने को
सब कुछ तो वहीं स्थिर है आज भी
वो रास्ते ,वो मोड़ ,वो सड़कें ,वो कॉलेज
हाँ अलग हैं तो हम सबके जीवन
जिनमें कोई सुखी है तो कोई दुखी
कोई रईस है तो कोई मध्यम वर्गीय
जब भी गुजरती हूँ उन रास्तों से
याद आ जाती हैं वो पुरानी बातें
बचपन की वो मीठी मीठी झिड़कियां
वो सौंधी सौंधी सी मिट्टी की खुश्बू
भोर में दूर से आती आरती की आवाजें
वो छत पर जाकर सुबह पढ़ाई करना
बस एक चिन्ता रहती थी पढ़ाई करने की
स्कूल जाना कितना सुहाना था उन दिनों
घर में न जाने क्यों सूना सूना लगता था
कॉलेज की वो यादें दिल को सुकून देती हैं
रास्ते में ही तो पड़ता है मेरा कॉलेज
जब भी निकलती हूँ लाइब्रेरी की तरफ से
आज भी सखियों का घेरा नजर आता है
कैसे भूल सकती हैं वो अपनी सी बातें
सिमट जाती हूँ जैसे वहीं तो हैं आज भी
मेरी जिंदगी की वो अमिट यादें जहाँ
रूकी सी है आज भी मेरी जिंदगी
थम गयीं हैं रातें जैसे वहीं तो फना है
मेरे जज्बातों की अनसुनी सी फरियादें

— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017