सौजन्य भेंट
सौजन्य भेंट
“पापा, आपको जब भी कोई साहित्यकार मित्र अपनी पुस्तक भेंट करते हैं, तो वे बाकायदा आटोग्राफ देकर ही करते हैं, जबकि आप अपनी पुस्तकें देते समय उसमें आटोग्राफ नहीं देते। ऐसा क्यों ?”
“देखो बेटा, ज्यादातर होता यह है कि जब भी हम किसी को कोई पुस्तक आटोग्राफ के साथ भेंट करते हैं, तो वह बंदा उसे पढ़ कर अपनी अलमारी में रख लेता है या फिर पढ़ कर या कुछ तो बिना पढ़े ही कबाड़ में या सेकंड हैंड बुक डिपो में बेच देता है। सामान्य तौर पर पुस्तक में नाम लिखा हुआ होने से उसकी अच्छी कीमत भी नहीं मिलती है। इसलिए मैं आटोग्राफ नहीं देता। इससे होता ये होगा कि सामने वाला व्यक्ति पढ़कर उसे किसी दूसरे को, दूसरा तीसरे को उपहार में दे सकता है। यदि कबाड़ में बेचे, तो भी उसे ठीक-ठाक कीमत मिल सकता है। आटोग्राफ नहीं होने से उसके अलमारी में कैद होने की संभावना कम हो जाती है और वह अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँच सकती है।
“वावो, सो नाइस आइडिया पापा।” बेटे ने मुस्कुराते हुए कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ़