गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज मौसम ने सुनो ढाया क़हर है।
देख चलने ही लगी अब शीत लहर है।।

किटकिटाने दाँत देखो हैं अभी यक।
नींद भी आती नहीं दूजा पहर है।।

हम ओढ़ते हैं रजाई देर तक ही।
रोज़ लगती ही हमें ठंडी सहर है।।

आ गये मिलने हमें तूने बुलाया।
खूब ही दिलकश लगे तेरा शहर है।।

शबनम बूँदें हैं पड़ीं हर फूल पर ही।
सूर्य आकर सोख लेता ही मगर है।।

बढ़ चले अब तो क़दम तेरी तरफ़ ही।
बन गया तू ही अभी हमसफ़र है।।

ये प्रदूषित ही हवा फैले यहाँ पर।
आज इस परिवेश में घुलता ज़हर है।।

बढ़ रहा आतंक देखो तो यहाँ पर।
आज के अख़बार की ताज़ा ख़बर है।

दूधिया ही चाँदनी फैले अभी तो।
आज सबकी चाँद पर ही तो नज़र है।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’